शिवपुरी। शिवपुरी जिले के बैराड़ थाना अंतर्गत बन्हेरा खुर्द गांव की रामपुरा आदिवासी बस्ती में बीती रात हुई दरिंदगी के बाद भी हालात सामान्य नहीं हो सके हैं। बस्ती के पीड़ित परिवार अब भी दहशत में जी रहे हैं। मगर सबसे शर्मनाक और खतरनाक बात ये है कि अब वही संदिग्ध आरोपी और उनके गिरोह के लोग आदिवासियों को लगातार जान से मारने की धमकियाँ दे रहे हैं। मंगलवार सुबह पीड़ित परिवारों को फोन कर खुलेआम धमकाया गया कि "जंगल जाओगे तो जिंदा नहीं लौटोगे, और तुम्हारा संजय बेचैन व टीआई भी अब तीन दिन के हैं।"
यह था मामला
रात करीब 12 बजे जब सहरिया आदिवासी खेतों और मजदूरी से लौटकर गहरी नींद में थे, तभी पाँच नकाबपोश बदमाश हथियारों से लैस होकर बस्ती में दाखिल हुए। सबसे पहले दिनेश आदिवासी के घर दस्तक दी गई। जैसे ही दिनेश ने दरवाजा खोला, बदमाशों ने उसकी कनपटी पर बंदूक तान दी और उसे जमीन पर पटक दिया। मोबाइल छीना और महिलाओं को बेरहमी से पीट डाला। दिनेश को धमकी देते हुए कहा — “हमें सीता के घर ले चल।” डर के मारे दिनेश उनके साथ चल पड़ा। सीता आदिवासी के घर पहुँचकर बदमाशों ने सभी पुरुषों को कमरे में बंद कर दिया। महिलाओं — बैजन्ती बाई और अनीता को घसीटकर बाहर निकाला और बंदूक की बटों से पीटा। चीख-पुकार सुनने वाला कोई नहीं था। बदमाश घर का बक्सा पलटकर ₹10,000 नगद व सोने-चांदी के जेवरात लूट ले गए। इसके बाद दौलतराम आदिवासी के घर जाकर भी यही किया। दौलतराम को कमरे में बंद कर महिलाओं को लात-घूंसे और डंडों से मारा-पीटा। यहां से भी जेवर और नकदी लूटी। दरिंदगी यहीं नहीं थमी, एक अन्य घर में अकेली महिला को खाट पर पटककर उसके साथ दुष्कर्म किया गया। पूरी बस्ती चीखती-चिल्लाती रही, लेकिन कोई मदद को नहीं पहुंचा।
बस्ती में अब भी पसरा सन्नाटा
रामपुरा बस्ती में अब भी मातम पसरा हुआ है। महिलाओं की आंखों में डर और बेबसी है। पीड़ित बैजन्ती बाई, अनीता और अन्य महिलाओं ने बताया कि अब जंगल जाना भी खतरे से खाली नहीं। खेतों में काम करने, लकड़ी-बांस काटने और महुआ-बेर बीनने जाने वाली महिलाओं को जान से मारने की धमकियाँ दी जा रही हैं।
सहरिया क्रांति आंदोलन ने चेताया
घटना के बाद लगातार मोर्चे पर डटे सहरिया क्रांति आंदोलन के सदस्यों ने बैराड़ थाने में पुलिस अधिकारियों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि "अगर जल्द ही बदमाश गिरफ्तार नहीं हुए तो आदिवासी समाज आंदोलन करेगा। हम एसपी ऑफिस का घेराव करेंगे और दोषी अधिकारियों के निलंबन की मांग करेंगे।" पुलिस प्रशासन अभी भी सिर्फ अज्ञात बदमाश कहकर मामले को दबाने की कोशिश कर रहा है। पीड़ित परिवारों के अनुसार पुलिस ने अब तक घटना स्थल का सही से निरीक्षण तक नहीं किया। बस्ती में गश्त लगाने का वादा भी सिर्फ कागजों तक ही सिमट कर रह गया है।
जनप्रतिनिधियों की चुप्पी पर सवाल
सबसे हैरानी की बात ये है कि इतनी बड़ी वारदात के बाद अब तक कोई भी विधायक, सांसद या जनप्रतिनिधि बस्ती में नहीं पहुंचा। न कोई अफसर और न ही कोई पंचायत प्रतिनिधि। सवाल उठता है कि आखिर आदिवासी बस्तियों में इंसाफ की आवाज कब सुनी जाएगी?