सामाजिक न्याय के लिए वंचितों को आरक्षण नीति में संशोधन करें सरकारें (वंचितों को आरक्षण में कोटे में कोटा लागू करने और इसके विरूद्ध पुनर्विचार याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज करने के बाद) चन्दन लाल वाल्मीकि

0


शिवपुरी। वंचितों को सामाजिक समरसता के साथ उनकी गैरबराबरी को असली अमली जामा पहनाने के लिए बाबा साहेब डॉक्टर भीमरॉव अम्बेडकर द्वारा संविधान में प्रदत्त अधिकार और प्रावधान दिए। उसके  बाद भी वंचित समाज के लोग आज भी बत्तर हालात में जीवन जीने को मजबूर हैं। उन्हें दो जून की रोटी के लिए सीवर में जान देना आम बात है। 

वंचितों के सामाजिक न्याय के लिए राजनैतिक दल चुनाव से पहले अपने घोषणा पत्र में वायदे तो तमाम करते हैं, लेकिन सरकार बन कर शपथ लेते ही वास्तविक सामाजिक न्याय के लिए राज्य सरकारों की बातें वास्तविकता से परे हो जाती हैं।

चांहे बात बहुजन हिताए बहुजन सुखाए की हो, या समाज के अंतिम चेहरे पर मुस्कान लाने की हो या अन्योदय की हो, यह राजनैतिक पार्टियों के सिद्वान्त तो हैं लेकिन इन सिद्वान्तों को धरातल पर लागू करने में राजनैतिक दल सत्ताधारी हो जाने पर भेदभाव करते हैं, इसे इन्कार नहीं किया जा सकता।

सर्वोच्च न्यायलय के कई जन कल्याणकारी आदेश राज्य सरकारें मानने में हीलाहवाली करती हैं। वंचितों की जायज मांग के अदालती निर्णयों को सरकारें मानने को तैयार नहीं होती। सरकारों का इस सोच को बदल कर सामाजिक न्याय को प्राथमिकता पर रख कर काम करने की आवश्यकता है।

गत लोकसभा चुनावों से पूर्व भारतीय जनता पार्टी के कई जिम्मेदारों के संविधान को लेकर आपत्ति जनक ब्यानों के बाद कई गैर भारतीय जनता पार्टी के राजनैतिक दलों ने संविधान को मुद्दा बनाया कि यदि भाजपा की केन्द्र में तीसरी बार सरकार बनीं तो संविधान बदल देंगे। दलितों में इसका प्रभाव पढा और उत्तर प्रदेश में हासिये तक की पार्टी बजूद में आकर देश की लोकसभा में तीसरे नम्बर की पार्टी बन गई। दलितों में संविधान के प्रति आस्था है। संविधान की समाप्ति के विरुद्ध प्रचार और दलितों के विखराव के कारण विश्व की सबसे बडी भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने के लिए छोटे छोटे दलों से मजबूरन सांठगांठ बैठाल कर सरकार बना पाई। मोदी सरकार ने बाबा साहेब के लिए बहुत कुछ किया। बाबा साहेब ने हमेशा वंचितों की बराबरी के लिए लडाई लडी, और संविधान में व्यवस्थाएं भी की। लेकिन स्वस्थ मानसिकता से सरकारों ने इस लागू नहीं किया।

वंचितों की असमानताओं को समाप्त करने के लिए आरक्षण एक कारगर हथियार है।  सब को आरक्षण का लाभ मिले,  इसके लिए वंचितों को आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए एक अगस्त के सर्वोच्च न्यायलय के राज्यों में कोटे में कोटा निर्णय आया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आरक्षण का लाभ कुछ चुनिन्दा जातियों को लाभ मिल रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने शेष वंचित जातियों को आरक्षण का लाभ के लिए कोटे में कोटे का रास्ता सरकारें का खोल दिया है।

इस निर्णय का स्वागत हर आरक्षण से वंचित के साथ सामाजिक आर्थिक, शैक्षणिक, और राजनैतिक रूप वंचित वर्ग ने अपने अपने तरीके से सभा, सम्मेलन, रैली, मोर्चा, मार्च, ज्ञापन आदि माध्यमों से किया। वंचितों की राजनैतिक हिस्सेदारी होती हो प्रधानमंत्री से भी एक संसदीय समूह के रूप में मिलकर अपने दर्द का ब्यान करते।

तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने अनुसूचित जातियों के आरक्षण में वर्गीकरण को लेकर सर्वोच्च न्यायलय के फैसले को एतिहासिक बताते हुए निर्णय का स्वागत किया और तेलंगाना सरकार ने आरक्षण में उपवर्गीकरण के लिए ए.बी.सी.डी. करने के लिए कैबिनेट मंत्री उत्तम कुमार रेडडी  ने कैबिनेट उप समिति गठित कर दी है।

उत्तर प्रदेश में भी वंचितों को आरक्षण देने के लिए पूर्व में हुकुम सिंह कमेटी 2001 रिपोर्ट के आधार पर राजनाथ सिंह की सरकार में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए आरक्षण संशोधन अधिनियम 2001 के अन्तर्गत सफाई पेशा करने के कारण वंचित जाति वाल्मीकि को ख श्रेणी में रख कर जाति प्रमाण पत्र जारी किए गये। जब वंचितों को इस से लाभ होने लगा तो बाद में मायावती की सरकार ने पर इसे समाप्त कर पुरानी व्यवस्था लागू कर दी।

आज भी जो जातियां सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विरोध कर रहे हैं उनकी जातियां पूर्व से ही वर्गीकृत हैं जैसे चमार धुसिया, जाटव, झुसिया इसी लिए इन चारों जातियों की जनसंख्या की गढ़ना एक साथ है। इन चार जातियों की संख्या एक साथ होने से हर राजनैतिक दल इन जातियों को महत्व देते हैं, और आरक्षण का लाभ के अवसर भी अधिकांश रूप में इन्ही जातियों को मिला है। इसी कारण हल दल में यही जातियां शीर्ष पर हैं। यहां तक की उत्तर प्रदेश विमुक्ति जातियों की सुविधाओं की सूची में भी चमार जाति सम्मलित है। इसका कारण यह भी है कि योजना बनाने बालों भी उसी जाति के उच्च अधिकारी और प्रभावशाली राजनैतिक पदों पर  हैं।

एक अगस्त के सुप्रीम कोर्ट के कोटे में कोटा के निर्णय के खिलाफ 7 जजों की संविधान पीठ ने पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी इस से राज्यों को उपवर्गीकरण लागू करने का बल मिल गया है।

यदपि योगी आदित्यनाथ सरकार के तत्कालीन कैबिनेट मंत्री रमापति शास्त्री की अध्यक्षता वाली सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट 2018 में आरक्षण में कोटे में कोटा की सहमति बनी जिसे सिर्फ कैबिनेट सभा में पास होना है, लेकिन यह रिपोर्ट आज भी धूल खा रही है।

तेलंगाना सरकार ने कैबिनेट मंत्री उत्तम कुमार रेडडी ने कैबिनेट उप समिति गठित कर अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय के प्रतिनिधियों से उपवर्गीकरण का रायमश्वरा लेना शुरू कर दिया है।

हरियाणा सरकार के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पहले ही 18 अगस्त को अपनी कैबिनेट में  अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग हरियाणा की रिपोर्ट के आधार पर यह मामला चुनावी आचार संहिता के कारण विचाराधीन और प्रक्रिया में है।

सर्वोच्च न्यायलय के अनुसार राज्य सरकारें किसी जाति को 100 प्रतिशत कोटा नहीं दे सकतीं, किसी अनुसूचित जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता डेटा होना चाहिए

अनुसूचित जाति की जो जातियां वंचित रह गई हैं उनके लिए वर्गीकरण  कर आरक्षण दिया जाना चाहिए।

2006 में पंजाब में अनुसूचित जाति के लिए निर्धारित कोटे के भीतर वाल्मीकि और मजहबी सिखों को सार्वजनिक नौकरियों प्रथक कोटा देकर वरीयता दी गई। इसी लिए पंजाब में वंचित जातियों की स्थिति में सुधार दिखता है।  

उल्लेखनीय है कि भारत में आरक्षण की व्यवस्था के लिए महात्मा ज्योतिबाफूले ने 1882 अंग्रेजों से शिक्षा और नौकरी में प्रतिनिधित्व की मांग की,1901 दलितों की उन्नति के लिए पहली वार अधिसूचना महाराष्ट्र के कोल्हापुर शाहू जी महाराज जारी कराई। देश की आज़ादी के बाद संविधान शिल्पी डॉक्टर अम्बेडकर के अनेक प्रयासों बाद 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े व अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को समान अधिकार देते हुए, संविधान में विशेष धाराएं बनाई गई और राजनैतिक प्रतिनिधित्व को रखने के लिए 10 वर्षों के लिए आरक्षण की व्यवस्थाएं की गई जबकि आरक्षण की शुरुआत से 142 वर्षों के बाद भी आरक्षण के अधिकारों से वंचितों के लिए सर्वोच्च न्यायलय के आदेश और उसके बाद सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय के विरूद्ध पुनर्विचार याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज करने के बाद भी राज्य सरकारों की जिम्मेदारी बनती है। देश भर में वंचितों के आरक्षण लागू करने की मांग को अनदेखा नहीं करना चाहिए। वंचितों के हालात और उनकी जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए, आरक्षण का लाभ हर जाति के वंचितों को मिले हरियाणा और तेलंगाना राज्य की भांति अन्य राज्य सरकारों को सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार आरक्षण लागू करने की कार्यवाही को प्राथमिकता पर अमल में लाना चाहिए।

Tags

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)
/*-- Don't show description on the item page --*/
To Top