माँ आखिर माँ होती है: अपनी 11 महीने की बच्ची को बचाने चादर व पॉलीथिन में लपेट उफनते नाले को पार कर बस में धक्के खाए, रात में पैदल लेकर पहुंची, नहीं बची जान

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शिवपुरी : एक आदिवासी मां ने अपनी 11 महीने की बच्ची को बचाने के लिए हर कोशिश की। बच्ची को अस्पताल पहुंचाने के लिए सिर पर उठाकर उफनते नाले को पार किया। तीन सरकारी अस्पताल के चक्कर लगाए, लेकिन उसे बचा नहीं सकी। रविवार रात बच्ची ने जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया। मौत के बाद उसे वहां से जाने को कह दिया गया। एंबुलेंस भी उपलब्ध नहीं करवाई गई। रोते-बिलखते परिवार को देख लोगों ने चंदा कर उसे कुछ रुपए दिए। इसके बाद वह मृत बेटी को चादर में लपेटे पहले पैदल, फिर ऑटो और बाद में बस से जैसे-तैसे रात 2 बजे शव लेकर अपने गांव पहुंची और फिर उसे दफनाया गया।


मनीषा अदिवासी का ससुराल रन्नौद थाना क्षेत्र के अकाझिरी के पास गुर्जन गांव में है। 11 महीने पहले उसने जुड़वा बेटियों को जन्म दिया था। दोनों बच्चियों को लेकर वह रक्षाबंधन पर अपने पिता के घर लुकवासा के बरखेड़ी गांव आई थी। काम के चलते पति चमन आदिवासी ने उसे बच्चियों के साथ बस से रवाना कर दिया था। जन्माष्टमी पर सोमवार को पति चमन उसे ले जाने के लिए मायके आने वाला था।


मनीषा ने बताया कि दो दिनों से लगातार बारिश हो रही थी। शनिवार रात जुड़वां बच्चियों में से एक को उल्टी और दस्त शुरू हो गए। तेज बारिश और रात होने से बेटी को गोद में लेकर सुबह होने का इंतजार करती रही। हल्का उजाला हुआ तो तेज पानी में वह बेटी को पॉलीथिन और चादर में लपेटकर तुड्याद गांव के लिए निकल गई। यहां एक क्लिनिक है। बारिश के कारण गांव के बाहर रपटा उफान मार रहा था। बेटी की हालत ठीक नहीं होने से उसे जान की परवाह किए बगैर पानी में उतर गई। जैसे-तैसे तेज बहाव के बीच उसने नाले को पार किया। यहां डॉक्टर ने दवा दी, लेकिन कुछ घंटे बाद भी बेटी की तबीयत में सुधार नहीं आया।


मनीषा ने बताया कि यहां से बस अड्‌डे पर आई और दोनों बेटियों को लेकर बस में सवार हुई। त्योहार के कारण बस में जगह नहीं थी, इस लिए दोनों बेटियों के साथ जैसे-तैसे लुकवासा अस्पताल पहुंची। यहां इलाज के नाम पर खानापूर्ति करके मुझे कोलारस अस्पताल ले जाने को कह दिया। बेटी की हालत लगातार गिरती जा रही थी। विनती के बाद भी एम्बुलेंस की व्यवस्था नहीं की गई। यहां से फिर बस अड्‌डे पहुंची, बस में जैसे-तैसे कोलारस अस्पताल पहुंची। यहां भी बच्ची की तबीयत में कोई सुधार नहीं आया। इस पर मुझे बच्ची को जिला अस्पताल ले जाने को कह दिया। बच्ची को रैफर तो किया, लेकिन एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं कराई। मैं फिर बस और दूसरे साधन से पिता और दो बच्चियों के साथ जिला अस्पताल पहुंची।


मनीषा ने बताया कि रविवार शाम 6 बजे जिला अस्पताल पहुंची। बच्ची की हालत बहुत खराब हो चुकी थी। अस्पताल में भीड़ लगी हुई थी। पर्चा बनवाने में देर हो गई। डॉक्टर ने तो बच्ची को देखा नहीं, ट्रॉमा में नर्सों ने बेटी को चेक किया और फिर इस वार्ड से उस वार्ड में घुमाते रहे। अस्पताल के बारे में कुछ पता नहीं था, इसलिए जैसा उन लोगों ने बोला- मैं दोनों बेटियों को लेकर इधर से उधर घूमती रही। बच्ची मेरी गोद में निढाल हो गई। मैंने नर्स को बताया तो जैसे-तैसे रात 8 बजे डॉक्टर ने बच्ची को देखा। कुछ देर बाद कहा- बच्ची की मौत हो चुकी है। मनीषा का कहना है कि अगर बच्ची का सही समय पर जिला अस्पताल में इलाज शुरू हो जाता तो उसकी जान बच सकती थी।


मनीषा ने बताया बेटी की मौत की पुष्टि रात 9 बजे की। शव को ले जाने की हमारे पास कोई व्यवस्था नहीं थी। न तो गांव के लिए बस थी और ना इतने रुपए थे कि निजी वाहन से बच्ची के शव को लेकर रवाना होते। एक दो लोगों से बात की लेकिन कोई शव लेकर जाने को तैयार नहीं था। अस्पताल में डूयटी स्टाफ से एम्बुलेंस से शव भिजवाने की गुहार लगाई। पहले स्टाफ ने एम्बुलेंस उपलब्ध कराने की बात कही, लेकिन एक घंटे बाद इंकार दिया। रात 10 बजे तक यहां-वहां भटकते रहे। मैं बेटी को गोद में लिए रो रही थी। अस्पताल में आए कुछ लोगों ने बेटी के बारे में पूछा तो मैंने उन्हें पूरी बात बताई, इस पर उन लोगों ने चंदा कर मेरी मदद की।


जिला अस्पताल से एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं होने के बाद मनीषा मृत बेटी को लेकर पैदल ही बस स्टैंड की ओर चल पड़ी। रास्ते में महिला की मदद एक टैक्सी वाले ने की। उसने उसे बस स्टैंड तक पहुंचाया। यहां पर चादर में मृत बेटी को लेपेटे वह बस में सवार हुई। बस से वह रात 2 बजे लुकवासा पहुंची। यहां से पैदल अपने गांव पहुंची और रात को शव को ही परिवारवालों ने शव को दफनाया।


जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. बीएल यादव का कहना कि बच्ची की मौत के बाद शव वाहन के लिए रेडक्रॉस को सूचना दे दी गई थी। शव वाहन भेजने का काम रेडक्रॉस प्रबंधन द्वारा ही किया जाता है। सूचना के बाद रेडक्रॉस का शव वाहन छोड़ने किन वजह से नहीं गया, यह उन्हें मालूम नहीं है। डॉ. बीएल यादव ने बताया कि इसके अतिरिक्त रात 11 बजे के बाद परिजन से फोन पर चर्चा हुई थी। उन्हें शव को फ्रीजर रखने की बात की गई थी, लेकिन वह इस बात से राजी नहीं हुए थे। हालांकि रात के समय जिला अस्पताल परिसर में रेड क्रॉस का वाहन भी खड़ा हुआ था।

शिवपुरी जिला ब्यूरो चीफ  मोनिस कोड़े के साथ युसूफ खान की रिपोर्ट

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